युवाओं में बढ़ रहा हेड और नेक कैंसर का खतरा, तंबाकू और गलत जीवनशैली बनी बड़ी वजह

By: PalPal India News
April 16, 2025

नई दिल्ली। इन दिनों युवाओं में हेड और नेक कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो बेहद चिंता का विषय है। इसी के मद्देनज़र हर साल अप्रैल महीने को हेड और नेक कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है, ताकि लोग इस गंभीर बीमारी के प्रति सजग हो सकें। इस मौके पर आईएएनएस ने सीके बिरला अस्पताल के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. मंदीप मल्होत्रा से इस बीमारी से जुड़ी अहम जानकारियों पर खास बातचीत की।

तंबाकू है सबसे बड़ा खतरा

डॉ. मल्होत्रा के मुताबिक हेड और नेक कैंसर के सबसे प्रमुख कारणों में तंबाकू का सेवन है। बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा, सुपारी, जर्दा और खैनी जैसी आदतें युवाओं को कम उम्र में ही कैंसर का शिकार बना रही हैं। इसके अलावा शराब पीना, वायु और जल प्रदूषण, मिलावटी खाना, तनाव, नींद की कमी और खराब खानपान जैसी खराब जीवनशैली भी खतरे को और बढ़ा रही है।

क्या होता है हेड और नेक कैंसर?

डॉ. मल्होत्रा बताते हैं कि यह कैंसर सिर और गर्दन के कई हिस्सों में हो सकता है – जैसे मुंह, जीभ, गाल, गला, टॉन्सिल, आवाज की नली, खाने की नली का ऊपरी हिस्सा, नाक, साइनस और आंखों के आसपास की हड्डियां। इसके अलावा थायरॉइड और पैरोटिड ग्रंथियों में होने वाला कैंसर भी इसी श्रेणी में आता है।

पहचानें शुरुआती लक्षण

इस कैंसर के लक्षण शुरुआत में मामूली लग सकते हैं, लेकिन इन्हें नज़रअंदाज़ करना भारी पड़ सकता है। कुछ प्रमुख लक्षण हैं:

  • मुंह में न ठीक होने वाला छाला
  • जीभ या गाल में गांठ
  • आवाज में बदलाव
  • निगलने में परेशानी
  • गले या कान में दर्द
  • गर्दन में सूजन या गांठ
  • नाक से खून या काला म्यूकस

अगर ये लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।

कैसे होती है जांच और इलाज?

डॉ. मल्होत्रा बताते हैं कि अगर किसी घाव या गांठ में सुधार नहीं हो रहा, तो बायोप्सी के जरिए उसका परीक्षण किया जाता है। इसके बाद सीटी स्कैन, एमआरआई या पेट स्कैन से कैंसर की स्टेज और फैलाव का पता लगाया जाता है।

अब नई तकनीक ‘लिक्विड बायोप्सी’ भी उपलब्ध है, जिसमें खून के सैंपल से कैंसर का पता लगाया जा सकता है। यह उन मामलों में खासतौर पर कारगर है, जहां पारंपरिक बायोप्सी करना मुश्किल हो।

इलाज के बाद भी सतर्कता जरूरी

कैंसर का इलाज हो जाने के बाद भी यह दोबारा लौट सकता है, खासकर अगर मरीज तंबाकू या शराब जैसी आदतें नहीं छोड़ता। ऐसे में नियमित निगरानी और जांच बेहद जरूरी हो जाती है। लिक्विड बायोप्सी जैसी तकनीक से इलाज के बाद निगरानी आसान हो गई है।

जागरूकता ही बचाव है

डॉ. मल्होत्रा का मानना है कि हेड और नेक कैंसर से बचने का सबसे असरदार तरीका है – जागरूकता और जीवनशैली में सुधार। युवाओं को तंबाकू और शराब जैसी आदतों से दूर रहना चाहिए, साथ ही समय-समय पर अपनी जांच भी कराते रहना चाहिए। एक स्वस्थ जीवनशैली ही इस बीमारी से बचाव की सबसे मजबूत ढाल है।

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